भारत में संविदा कृषि क्या है?

संविदा कृषि भारत में एक नया कृषि पद्धति है जो किसानों तथा उनको कृषि उत्पादों के खरीदारों एवं दुनिया भर में बाजारों के बीच संबंध स्थापित करती है। इस प्रकार के संबंधों में, संविदा तथा उनकी आपूर्ति एवं मूल्य के साथ-साथ उत्पादों की गुणवत्ता भी निर्धारित होती है।

इस प्रकार की कृषि पद्धति में, एक निश्चित समय अवधि के दौरान एक कंपनी या एक व्यापारी एक किसान से संविदा बनाकर उसके साथ नियमित रूप से उत्पादों की आपूर्ति के लिए समझौता करता है। उत्पाद की गुणवत्ता तथा मूल्य तय करके, संविदा जमा कराया जाता है।

इस प्रकार के संबंधों के लिए, संविदा कृषि अत्यंत लाभदायक होती है। इस पद्धति के माध्यम से, किसानों के उत्पाद मानदंडों का निर्धारण होता है, जो उन्हें अधिक मूल्य उत्पादों के लिए उत्साहित करता है। इसके अलावा, संविदा कृषि किसानों को अधिक बाजार सुविधाओं तक पहुंचने के लिए मदद करती है।

भारत में संविदा कृषि की आम स्थिति उत्तर क्षेत्रों में ज्यादा होती है। यहां तापमान ठंडा होता है जिससे फसलें प्राकृतिक तत्परता से नहीं बनती हैं। इसलिए, उन्नत तकनीकों का उपयोग करके उन्हें उत्पादन करने के लिए अन्य क्षेत्रों से बिजली और पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है। इस प्रकार के कारण, संविदा कृषि किसानों के उत्पाद के खरीदारों के साथ संबंध बनाने में मदद करती है।

इस नई कृषि पद्धति का उदय चीन में हुआ था और इसकी सफलता के कारण यह भारत में भी अपनी पैरों पर खड़ी हो गई है। इस पद्धति के माध्यम से भारत में कृषि उत्पादन का स्तर बढ़ाने के लिए जोर दिया जा रहा है।

संविदा कृषि की सफलता का मूल मंत्र है – एक तरफ किसानों को अधिक मूल्य उत्पादों के लिए उत्साहित करना तथा दूसरी तरफ खरीदारों के लिए गुणवत्तापूर्ण उत्पादों की आपूर्ति सुनिश्चित करना। इस पद्धति का उपयोग करने से उत्पादकों एवं खरीदारों दोनों को लाभ मिलता है।